कल मैंने ना जाने कौन सी बार उत्तर प्रदेश रोडवेज बस द्वारा यात्रा
की। बस में जाकर खड़ा हुआ
क्योंकि बैठने की जगह नहीं थी। खड़े खड़े बोर होते हुए ख्याल आया की चलो टाइम पास के लिए आज हम भी बस
की गतिविधियों को “ओब्ज़र्व” करेंगे जैसा की आजकल चलन में हैं। सबसे पहले अतरंगी व्यक्ति जो दिखाई दिया वो था बस
का कंडक्टर। उसके जैसा ‘पेसिमिस्ट’ व्यक्ति मैंने और कहीं नहीं देखा। जैसे उन्हें आधा गिलास खाली दिखाई पड़ता हैं इसे तो पूरी की पूरी एकदम
ठसाठस भरी बस जहाँ तिल रखने की भी जगह ना हो, खाली दिखाई पड़ती हैं, वो बस यहीं
बोलेगा की ‘भैया पीछे हो जाओ, पूरी की पूरी बस एकदम खाली पड़ी हैं।’ और उत्तर प्रदेश रोडवेज वालो ने टिकट्स के दाम भी शायद कंडक्टरो से
पूछ कर तय किये हैं। कहीं का किराया 29 रूपये तो कहीं का 33. अगर आपके पास खुले
पैसे नहीं हैं तो एक दो रूपये वापस मिलने की आशा तो छोड़ ही दीजिये।
अब आते हैं सवारियों
पर, पहले किस्म के लोग कंडक्टर के ही चिर परिचित मालूम होते हैं। उन्हें भी कुछ दिखाई नहीं देता। तीन लोगो की सीट पर तीन लोगो के होने के बावजूद भी
वो कहेंगे ‘अरे बहुत जगह हैं भाई, थोडा उधर खिसक जाओ, अभी तो दो लोग और बैठ
जायेंगे इस पर।’
दूसरी आती हैं
खुर्राट आंटियां, अगर आप गलती से ना जाने किस मनोदशा में ‘महिला’ सीट पर बैठ गए हैं
तो वो आपके पास आकर खडी हो जायेंगी और आपको ऐसे घूरेंगी जैसे आप ही ने भारत को
ऑस्ट्रेलिया के हाथों दो टेस्ट मैच हरवा दिए हो, और फिर ऊपर लिखे ‘महिला सीट’ की ओर
इशारा करके आपको इशांत शर्मा की तरह ‘अनवांटेड’ फ़ील करवा के आपको वहां से उठा
देंगी।
फिर आते हैं तीसरे
किस्म के यात्री, इन्हें मैंने ‘मजदूर चीटियों’ का नाम दिया हैं क्योंकि बिलकुल
उनकी ही तरह ये भी अपने वज़न से तीन गुना भारी सामान लेकर यात्रा करते हैं। ये बस में आते ही कमर पर लटका बैग चार लोगों के
मुँह पर मारेंगे और हाथ में लिए बैग सामान रखने वाली जगह पर रखने की जद्दोजेहद में
पांच लोगों के सर पर।
चौथी किस्म के यात्रियों
से मुझे बड़ा डर लगता हैं, ये वो हैं महिलायें जो अपने साथ चार से पांच बच्चे लिए
हुए होती हैं। जब तक
कंडक्टर सीट दिलवाने का आश्वासन ना दे दे वो बस में चढ़ती ही नहीं हैं। अब सीट उन्हें आसानी से मिल जाती हैं तो बच्चे
तो बच्चे हैं, वो कहाँ आराम से बैठने वाले हैं। अब वो अपनी सीट से आगे वाली सीट पर बैठी लड़की के
बाल खीचेंगे, नाक में ऊँगली डालेंगे और उस खनन के पश्चात वहाँ से निकले पदार्थों
को इधर उधर चिपका देंगे। रोके
जाने पर ना जाने कितने डेसिबल की कान फाडू ध्वनि के साथ रोना शुरू कर देंगे।
और पांचवी किस्म के
यात्री होते हैं मुझ जैसे, ट्विट्टर पीढ़ी वाले. उन्हें सीट मिल गयी तो ठीक वरना
डंडा पकड़ के चुपचाप खड़े रहेंगे। गाने सुनेंगे और बीच में फ़ोन में कुछ पढ़कर
मुस्कुराएंगे। इसी
किस्म में से कुछ लोग जो अपने आप को सुकरात और ह्वेन सांग का चाचा समझते हैं लोगो
को ‘ओब्ज़र्व’ करना शुरू कर देते हैं और वहीँ से 5 – 6 ट्वीट ओर एक आध ब्लॉग लायक
मटेरियल निकाल कर मन ही मन प्रफुल्लित होते रहते हैं।
अब आप भी जब अगली बार बस से सफ़र करे तो ‘ओब्ज़र्व’ करें. कुछ और ना हुआ तो टाइम तो मस्त कट ही जाएगा। और हाँ, इसी ओब्ज़रवेशन के बीच अपने स्टॉप का भी ध्यान रखें, निकल गया तो ड्राईवर चार गाली देने के बाद ही बस रोकेगा।
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